Mahanubhav - महानुभाव पंथ तथा जय कृष्णी पंथ स्थापना



महानुभाव पंथ तथा जय कृष्णी पंथ स्थापना
    
 
    महानुभाव पंथ (जय कृष्णी पंथ) की स्थापना भगवान श्री चक्रधर स्वामी ने इ. स. १२६७ की, समाज के  वर्ग को जीवन का अंतिम सत्य एवं मोक्षं प्राप्ती के राह दिखाये | भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी का अवतार धारण करना समाज के लिये बहोत ही उपयुक्त रहा, उन्होने अपने अनुयायीओको सत्य, अहिंसा, प्रेमदान एवं क्षमादान की मार्ग पर चलने के मार्ग दिखाये | प्रभू ने पंच अवतार की संकल्पना बहुत ही सुचारू ढंग से समाज को बतलाकर जीवन सफल किया | 

    भगवान श्री चक्रधर स्वामीजीने अपने भक्तोको कहा, "प्रभू चारो युगोमे अवतार धारण करते है" | जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण महाराज ने कुरुक्षेत्र मे अर्जुन से कहा था, "धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे" | ठीक उसी प्रकार ऐसा कोई युग नही, जहा भगवान भगवान का वास न हो| 

    भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी ने समाज को पांच अवतारो का दर्शन कराया जिसमे,  भगवान श्री कृष्ण महाराज एवं श्री दत्तात्रेय प्रभू महाराज स्वयं स्वयंभू अवतार है| श्री चक्रपाणी महाराज, श्री गोविंद प्रभू एवं स्वयं श्री चक्रधर स्वामी, इस तरह से महानुभाव पंथ के पांच अवतार माने जाते है| श्री दत्तात्रेय प्रभू महाराज का अवतार चातुर्युगी माना जाता है| प्रभू का वास आज भी मृत्युलोक में प्रस्थापित है| 

गुरु परंपरा
    जिस तरह भगवान श्री कृष्ण महाराज एवं श्री दत्तात्रेय प्रभू महाराज स्वयं स्वयंभू अवतार है, ठीक उसप्रकार श्री दत्तात्रेय प्रभू, श्री चक्रपाणी महाराज के गुरु है| श्री चक्रपाणी महाराज, श्री गोविंद प्रभू एवं भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी के गुरु माने जाते है| श्री गोविंद प्रभू, भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी के गुरु है|

 पंच नाम कि महिमा
    भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी ने अपने अनुयायीयो मोक्षं प्राप्ती का सरल मार्ग बतलाया, नाम स्मरण एकमात्र उपाय है, जो मानव को मोक्षं की राह दिखलाता है | पंच नाम का नित्य स्मरण (महानुभाव पंथ - स्मरण सेवा विधी) करना मनुष्य अपने जीवन में मोक्षं पा सकता है| स्मरण विधी का विश्लेषण मेरे पूर्व article में (महानुभाव पंथ - स्मरण सेवा विधी) आप पढ सकते है| जो आप की कृपा से बहुत प्रसिद्ध हुआ है|

महानुभाव पंथ के पंच अवतार दर्शन
  • भगवान श्री कृष्ण चक्रवर्ती महाराज
  • भगवान श्री दत्तात्रेय प्रभू महाराज
  • भगवान श्री चक्रपाणी महाराज
  • भगवान श्री गोविंद प्रभू 
  • भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी

   अधिक जानकारी के लिये कृपया आप पंच अवतार - महानुभाव article में पढ सकते है| जो आप की कृपा से बहुत प्रसिद्ध हुआ है|

महाराष्ट्र कर्मभूमी 
   सर्वज्ञ भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी भ्रमण करते हुये महाराष्ट्र में आये और बहुत लिलाए रची, इस कारण महाराष्ट्र में पंथ के तीर्थ स्थान अधिक मात्र में पाये जाते है| इन लिलाओ को जानने व समजणे के लिये "लिला चरित्र" नामक ग्रंथ को पढना होगा, या पूज्य महंत अथवा साधू मुनिवर के शुभ मुख से ज्ञान प्राप्तः करना ही उचित है| भगवान के अनुयायी श्री नागदेवाचार्य, माईमभट्ट, बाईसा, महदाईसा ने सर्वज्ञ के उत्तरदिशा की ओर प्रस्थान के बाद पंथ का प्रसारण किया| 

धर्म प्रसार हेतू 
  • श्री मदभगवदगीता - पंथ का अध्य ग्रंथ है| 
  • लिळा चरित्र - पंडित माईमभट्ट (सर्वज्ञ भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी का जीवन चरित्र है)
आदि प्रमुख ग्रंथ
  • रुख्मिणी स्वयंवर - श्री नरेंद्र भट्ट (१२९२)
  • शिशुपाल वध - भास्कर भट्ट बोरीकर (१३१२) 
  • उद्धवगीता - भास्कर भट्ट बोरीकर (१३१३)
  • साय्ह्याद्रीवर्णन -   रावळोबास (१३५३)
  • रिद्धपूर वर्णन - नारायणबास (१४१८)
  • वच्छहरणं  - दामोधर पंडित (१३१६)
  • ज्ञानप्रबोध - विश्वनाथ बालापुरकर (१४१८)
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श्री कृष्ण चक्रवर्ती महाराजास माझे साष्टांग दण्डवत प्रणाम
श्री दत्तात्रेय प्रभूस माझे साष्टांग दण्डवत प्रणाम
श्री चक्रपाणी महाराजास माझे साष्टांग दण्डवत प्रणाम
श्री गोविन्द्प्रभू बाबांना माझे साष्टांग दण्डवत प्रणाम
श्री चक्रधररायास माझे साष्टांग दण्डवत प्रणाम
चतुर्विध साधनास माझे साष्टांग दण्डवत प्रणाम
साडे सोळाशे तीर्थांना माझे साष्टांग दण्डवत प्रणाम


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